1967 में 'दिनमान' में सूखे को लेकर दो पन्नों में कविताएँ प्रकाशित हुई
थी जिसमें सूखे पर एक कविता अज्ञेय जी की भी थी. आज यह कविता अधिक
प्रासंगिक लग रही है.
अजब बात यह है कि यह कविता उनके किसी संकलन में भी नहीं है-
अन्न की कमी का रोना रोने
विधायक के पास न जाओ:
अन्न से विधायक सस्ता है:
अन्न की वसूली में
सरकारें भी सुस्त हैं--
विधायकों की खरीदारी में
हर दल दिलेर है!
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