Friday, May 13, 2016

चाणक्यनीति

वरं न राज्यम् न कुराजराज्यम् 
वरं न मित्रं न कुमित्र मित्रम् 
वरं न शिष्यॊ न कुशिष्य शिष्यॊ 
वरं न दारा न कुदारदारा: 
कुराजराज्येन कुतो: प्रजासुखम् 
कुमित्रमित्रेण कुतॊभिनिवृत्ति:
कुदारदारेण कुतॊ गृहेरति
कुशिष्यमध्यापत: कुतॊ यश:

बुरा राजा, मित्र, पत्नी, व शिष्य हॊने से न हॊना अच्छा है, क्योंकि बुरा राजा के राज में प्रजा सुखी कैसे रह सकती है,बुरे मित्र से आनन्द कैसे संभव है, बुरी स्त्री से घर कैसे अच्छा लग सकता है और बुरे शिष्य से यश प्राप्ति असंभव है,

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