Sunday, May 15, 2016

नर हो न निराश करो मन को

नर हो न निराश करो मन को
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहके निज नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को ।
संभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलम्बन को
नर हो न निराश करो मन को

Saturday, May 14, 2016

पंगत

शादी मे बफर (buffet) खाने में वो आनंद नहीं जो पंगत में आता था जैसे....
पहले जगह रोकना !
बिना फटे पत्तल दोनों का सिलेक्शन!
चप्पल जुते पर आधा ध्यान रखना...!
फिर पत्तल पे ग्लास रखकर उड़ने से रोकना!
नमक रखने वाले को जगह बताना यहां रख!
दाल सब्जी देने वाले को गाइड करना हिला के दे या तरी तरी देना!
उँगलियों के इशारे से 2 गुलाब जामुन लेना !
पूडी छाँट छाँट के गरम गरम लेना !.
पीछे वाली पंगत में झांक के देखना क्या क्या आ गया ! अपने इधर और क्या बाकी है।
जो बाकी है उसके लिए आवाज लगाना।
पास वाले रीश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूडी रखवाना !
रायते वाले को दूर से आता देखकर फटाफट रायते का दोना पीना ।
पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी। उसके हिसाब से बैठने की पोजीसन बनाना।
और आखरी में पानी वाले को खोजना।

हरियाणा के झज्जर जिले का इतिहास by Jogender Singh

जब झज्जर बसाई गई थी, उस समय पृथ्वीराज चौहान दिल्ली और अजमेर का राजा था और झज्जर का इलाका दिल्ली सूबे का हिस्सा था । सन् 1192 में मुहम्मद गौरी ने जब पृथ्वीराज चौहान पर हमला किया तो झज्जर का सारा इलाका एक गहरा जंगल था और इसके पूर्व में था एक मलोकन गांव और उसमें बसता था एक बहादुर, बुद्धिमान और कूटनीतिज्ञ बकुलान का जाट झोझू । यहां के जाटों ने पृथ्वीराज के हक में लड़ाई लड़ी थी । इसलिये 1193 में शहाबुद्दीन गौरी ने सजा के तौर पर इस मलोकन गांव को तबाह कर दिया था । इसी बहादुर झोझू जाट ने इस महान् शहर की नींव रखी थी, इसे पहले झोझू नगर भी कहते थी । झज्जर के माता गेट के अंदर, घोसियान मोहल्ले में आज भी झोझू जाट के वंशज रहते हैं । वहां रह रहे पोकर सिंह गहलावत] के पुत्र श्री अनूप सिंह और वयोवृद्ध श्री शम्भुराम गहलावत इसी वंश से हैं । उनका कहना है कि उसके वंशज झोझू, जोणा और देवा तीन भाई थे जो वास्तव में राजस्थान से आये थे । इनकी एक बहन थी जिसका नाम सुखमा था । इनके साथ केवल तीन जातियां ही आईं थीं - मुंदालिये नाई, बबेलिये ब्राह्मण और खेल के हरिजन । झज्जर क्षेत्र में उन दिनों भाटियों का अधिपत्य था । झोझू ने बांकुलान खेड़ा के पास झज्जर बसाई, दूसरे भाई जोणा ने जोणधी बसाई और तीसरे भाई देवा जो बेऔलाद था, ने देवालय बसाया जो आज झज्जर के नेहरू कालिज की पास भव्य मंदिर के रूप में मौजूद है । इनकी बहन सुखमा ने सुरखपुर बसाया । घोसिकान मोहल्ले को पहले झोझू मोहल्ला फिर माता गेट या घोसियान मोहल्ला के नाम से जाना जाता है । झज्जर के चारों तरफ मजबूत दीवार थी, बाकायदा मजबूत दरवाजे लगे नौ गेट होते थे जिनमें माता गेट, दिल्ली गेट, सिलाणी गेट, भठिया गेट, बेरी गेट, सीताराम गेट, दीवान गेट मशहूर हैं जिन्हें आज भी जाना जाता है । लेकिन इनके केवल नाम हैं, कोई गेट नहीं है और नही किसी दीवार का नामो-निशान है ।


झज्जर के नामकरण का दूसरा ऐतिहासिक पहलू यह भी है कि यहां चारों तरफ पानी ही पानी था, इसे झरना गढ़ और झझरी के नाम से भी जाना जाता था । झज्जर के इर्द-गिर्द पानी का बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर होता था । इसके इर्द-गिर्द साहिबी, इन्दूरी और हंसोती या कंसौटी नदियां बहा करती थीं । चारों ओर पानी ही पानी होता था । झज्जर के चारों तरफ पानी की विशाल झील होती थी, झज्जर तो एक टापू सा होता था । एक विशाल झील कोट कलाल और सूरहा के बीच होती थी । दूसरी विशाल झील कलोई और दादरी के मध्य में और तीसरी झील जो कुतानी तक पहुंचती थी, वह सोंधी, याकूबपुर और फतेहपुर के बीचों-बीच एक झील बनती थे । इसके रास्ते में एक पुल सिलानी की थली में आज भी एक नए रूप में मौजूद है । झज्जर की सीमा से पांच मील तक नजफगढ झील होती थी जो और आठ मील बुपनिया और बहादुरगढ़ तक फैल जाया करती थी । सांपला को तो यह झील अक्सर डुबोये रखती थी, 15 से 30 फुट तक गहरा पानी इस झील में भर जाया करता था । उधर झज्जर के पश्चिम में जहाजगढ़, तलाव, बेरी, ढ़राणा, मसूदपुर तक के पानी का बहाव भी झज्जर की ओर ही होता था । झज्जर के दादरी सर्कल में इन्दूरी और साहिबी नदी अलग-अलग दिशाओं से बहा करती थीं । इस तरह इस शहर का नाम पहली झाज्जू नगर, फिर झरनागढ़ और झज्जरी होते-होते झज्जर हो गया ।

सिन्धु घाटी की सभ्यता के बारे में हड़प्पा की खुदाई के अवशेषों से व प्राचीन हरयाणा के सन्दर्भ से पता चलता है कि सम्भवतः आर्यों के आगमन के कारण हड़प्पा के लोग दक्षिण-पूर्व की ओर आ गये । महाभारत के समय में इस क्षेत्र को बहुधान्यक नाम से जाना जाता था और मयूर इसका चिन्ह होता था । यौद्धेय जनपद गणराज्य यानी प्राचीन हरयाणा प्रदेश का हिस्सा था झज्जर प्रदेश ।

Friday, May 13, 2016

चार लोग क्या कहेंगे ?

मस्तक को थोड़ा झुकाकर देखिए अभिमान मर जाएगा
आँखें को थोड़ा भिगा कर देखिए पत्थर दिल पिघल जाएगा
दांतों को आराम देकर देखिए स्वास्थ्य सुधर जाएगा
जिव्हा पर विराम लगा कर देखिए क्लेश का कारवाँ गुज़र जाएगा
इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए खुशियों का संसार नज़र आएगा
पूरी जिंदगी हम इसी बात में गुजार देते हैं कि "चार लोग क्या कहेंगे",
और अंत में चार लोग बस यही कहते हैं कि "राम नाम सत्य है"

चाणक्यनीति

वरं न राज्यम् न कुराजराज्यम् 
वरं न मित्रं न कुमित्र मित्रम् 
वरं न शिष्यॊ न कुशिष्य शिष्यॊ 
वरं न दारा न कुदारदारा: 
कुराजराज्येन कुतो: प्रजासुखम् 
कुमित्रमित्रेण कुतॊभिनिवृत्ति:
कुदारदारेण कुतॊ गृहेरति
कुशिष्यमध्यापत: कुतॊ यश:

बुरा राजा, मित्र, पत्नी, व शिष्य हॊने से न हॊना अच्छा है, क्योंकि बुरा राजा के राज में प्रजा सुखी कैसे रह सकती है,बुरे मित्र से आनन्द कैसे संभव है, बुरी स्त्री से घर कैसे अच्छा लग सकता है और बुरे शिष्य से यश प्राप्ति असंभव है,

जिंदगी सुकून से जीने का मंत्र

जिंदगी सुकून से जीने का केवल एक ही मंत्र है :
"जो प्राप्त है
वो पर्याप्त है"

जिंदगी को जी

☄☄ तू जिंदगी को जी,उसे समझने की कोशिश ना कर। ☄☄
☄☄चलते वक़्त के साथ तू भी चल, वक्त को बदलने की कोशिश न कर.. ☄☄
☄☄दिल खोल कर साँस ले,अंदर ही अंदर घुटने की कोशिश न कर.. ☄☄
☄☄कुछ बाते भगवान् पर छोड़ दे, सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर....! ☄☄

मैँ और वो By गुलज़ार

उसे आईलाइनर पसंद था मुझे काजल,
वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफी पे मरती थी
और मैं अदरक की चाय पे,
उसे नाइट क्लब पसंद थे मुझे रात की शांत सड़कें,
शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे,
मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था,
लेखक बोरिंग लगते थे उसे
पर मुझे मिनटों देखा करती जब मैं लिखता...
वो न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कवायर,
इस्तांबुल के ग्रैंड बाजार में शॉपिंग के सपने देखती थी.
मैं असम के चाय के बागानों में खोना चाहता था,
मसूरी के लाल डिब्बे में बैठकर सूरज डूबना देखना चाहता था...
उसकी बातों में महँगे शहर थे
और मेरा तो पूरा शहर ही वो...
न मैंने उसे बदलना चाहा न उसने मुझे..
एक अरसा हुआ दोनों को रिश्ते से आगे बढ़े.
कुछ दिन पहले उनके साथ रहने वाली एक दोस्त से पता चला...
वो अब शांत रहने लगी है,
लिखने लगी है, मसूरी भी घूम आई,
लाल डिब्बे पर अँधेरे तक बैठी रही.
आधी रात को अचानक से उनका मन अब चाय पीने को करता है,..
और मैं.
मैं भी अब अक्सर कॉफी पी लेता हूँ
किसी महँगी जगह बैठकर.

उधार बंद है


अन्न की कमी

1967 में 'दिनमान' में सूखे को लेकर दो पन्नों में कविताएँ प्रकाशित हुई थी जिसमें सूखे पर एक कविता अज्ञेय जी की भी थी. आज यह कविता अधिक प्रासंगिक लग रही है.
अजब बात यह है कि यह कविता उनके किसी संकलन में भी नहीं है-


अन्न की कमी का रोना रोने
विधायक के पास न जाओ:
अन्न से विधायक सस्ता है:
अन्न की वसूली में
सरकारें भी सुस्त हैं--
विधायकों की खरीदारी में
हर दल दिलेर है!

अधुरा पूरा

सारी उम्र अधुरा रहा मैं,
जब सांस रुकी तो लोगो कहते पूरा हो गया.

गधे और शेर की कहानी

एक गधे ने एक शेर को चुनौती दे दी
कि मुझसे लड़ कर दिखा तो जंगल वाले तुझे राजा मान लेंगे | लेकिन शेर ने गधे की बात को अनसुना कर के चुपचाप वहाँ से निकल लिया |
एक लोमड़ी ने छुप कर ये सब देखा और सुना तो उस से रहा नहीं गया और वो शेर के पास जा कर बोली : क्या बात है ? उस गधे ने आपको चुनौती दी फिर भी उस से लड़े क्यों नहीं ? और ऐसे बिना कुछ बोले चुपचाप जा रहे हो ?
शेर ने गंभीर स्वर में उत्तर दिया : मैं शेर हूँ – जंगल का राजा हूँ और रहूँगा | सभी जानवर इस सत्य से परिचित हैं | मुझे इस सत्य को किसी को सिद्ध कर के नहीं दिखाना है | गधा तो है ही गधा और हमेशा गधा ही रहेगा | गधे की चुनौती स्वीकार करने का मतलब मैं उसके बराबर हुआ इसलिये भी गधा ।
गधे की बात का उत्तर देना भी अपनी इज्जत कम करना है क्योंकि उसके स्तर की बात का उत्तर देने के लिये मुझे उसके नीचे स्तर तक उतरना पड़ेगा और मेरे उस के लिये नीचे के स्तर पर उतरने से उसका घमण्ड बढ़ेगा | मैं यदि उसके सामने एक बार दहाड़ दूँ तो उसकी लीद निकल जायेगी और वो बेहोश हो जायेगा – अगर मैं एक पंजा मार दूँ तो उसकी गर्दन टूट जायेगी और वो मर जायेगा | गधे से लड़ने से मैं निश्चित रूप से जीत जाऊँगा लेकिन उस से मेरी इज्जत नहीं बढ़ेगी बल्कि जंगल के सभी जानवर बोलने लगेंगे कि शेर एक गधे से लड़ कर जीत गया – और एक तरह से यह मेरी बेइज्जती ही हुई |
इन्हीं कारणों से मैं उस आत्महत्या के विचार से मुझे चुनौती देने वाले गधे को अनसुना कर के दूर जा रहा हूँ ताकि वो जिंदा रह सके |
लोमड़ी को बहुत चालाक और मक्कार जानवर माना जाता है लेकिन वो भी शेर की इन्सानियत वाली विद्वत्तापूर्ण बातें सुन कर उसके प्रति श्रद्धा से भर गयी |
यह बोधकथा समझनी इस लिये जरूरी है कि जिन्दगी में आये दिन गधों से वास्ता पड़ता रहता है – और उनसे कन्नी काट कर निकल लेने में भलाई होती है |
शेर हमेशा ही गधों से लड़ने से कतराते आये हैं –
इसीलिए गधे खुद को तीसमारखाँ और
अजेय समझने लगे हैं ।
नोट: इस कहानी का कथित गधों से कोई सम्बन्ध नही है, इस लिए उपरोक्त कथन को गंभीरता से न ले

कहो सीते! तुम क्यों रही मौन Poem By नन्दना पंकज

कहो सीते!
तुम क्यों रही मौन
जब काटी जा रही थी
मेरी नाक,
'नाक काटना'
मुहावरे का अर्थ तो
भली-भांति समझती होगी तुम,

क्या ये था मेरा दोष
कि नारी होके भी
कर न पाई मैं अपनी
इच्छाओं का दमन,
चढ़ते यौवन के अल्हड़पन में
किसी सुकुमार पे आसक्त हो
कर डाला प्रणय-निवेदन,
जो विपरीत था तुम्हारे
तथाकथित सभ्य समाज के
दोगले नियमों के,
क्या इर्ष्या कर बैठी थी तुम
मेरी स्वच्छंदता,
मेरी निर्भिकता,
मेरी आत्मनिर्भरता से,
या सीखा ही न था तुमने
अपनी जिह्वा का उपयोग करना
पौरूष मनोवृत्ति के प्रतिकुल,
संभवतः तुम्हें भान न था
मेरे उन्मुक्त कामनाओं के
शोणित होने के परिणाम का,
सो चुप रही तुम,
और तुम्हारी चुप्पी
एक भयंकर भूल सिद्ध हुई,
सहना पड़ा तुम्हें भी
चरित्र पे लांछन,
भोगा ऐसे अपराध का दंड
जो तुमने किया ही नहीं,
अग्निपरीक्षा से सुरक्षित
निकल आई तुम्हारी देह,
किंतु हृदय को धधकने से
बचा पाई क्या तुम,
दग्ध व हताश तुमने
पुनः एक प्रलयकारी भूल की,
समा गई धरती में
कहलाई सती,
तुम्हारी कायरता को
महिमामंडित कर
ली जा रही है सदियों से
असंख्य सीताओं की बलि,
काटी जा रही है
शूर्पनखाओं की नाक अब भी,
फिर भी जी रही हूँ
उतनी ही स्वच्छंद,
उतनी ही निर्भिक,
उतनी ही आत्मनिर्भर होकर,
डायन, चुड़ैल,
फुलन, चरित्रहीन
कहता रहे ये आडंबरपुर्ण
सभ्य समाज,
स्वीकार है मुझे,
सीता या सती होना भी नहीं मुझे,
देवी कहलाना गाली से अधिक कुछ नहीं,
इतिहास से पूजी आ गई हो
वर्तमान तक किंतु
भविष्य तुम्हारा संकट में है सीते
क्या अब भी मूक ही रहोगी...
-नन्दना पंकज

Wednesday, May 11, 2016

इलाहाबाद के लड़के "राजीव ध्यानी द्वारा रचित एक सूंदर कविता "

इलाहाबाद के लड़के
इलाहाबाद के ही नहीं होते
वे बलिया, आज़मगढ़, जौनपुर
रायबरेली, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर
या फिर
रीवाँ, सतना, कसीधी
कहीं के भी हो सकते हैं
रोटियाँ नहीं बेल पाते
इलाहाबाद के लड़के
चावल में पानी का
अन्दाज़ नहीं आता
उन्हें बस चाय, ऑमलेट
और खिचड़ी बनाना आता हैं
तिवारी जी
जूनियर लड़कों से
चाय के पैंसे नहीं देने देते
इसलिए जूनियर लड़कों से बचकर
यादव ढाबे पर देर से पहुँचते हैं
इलाहाबाद के लड़के....
इलाहाबाद के लड़के
मंगलवार को व्रत रखते हैं
पाँच रूपए का बूँदी का प्रसाद चढ़ाते हैं
हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के साथ-साथ आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करते हैं
कलाई में कलावा
और बाँह पर तावीज बाँधते हैं
इलाहाबाद के वही लड़के
जो बड़े हनुमान के मन्दिर पर दिखते हैं
फूल शाह बाबा की
मज़ार पर भी दिख जाते हैं
कमरे में विवेकानन्द के बगल में
चे ग्येवेरा की तस्वीर लगाते हैं
इलाहाबाद के लड़के
कुछ अम्बेडकर की
और कुछ अखिलेश यादव की भी फ़ोटो लगते है
कपड़े टाँगने की कील के पीछे
छाँटकर इतवार के
रंगीन अखबार चिपकाते हैं
इलाहाबाद के लड़के
कील से कपडे निकालते समय
मुस्कुरा देती है पसंदीदा अभिनेत्री
जब देखते हैं
इलाहाबाद के लड़के....
कामचलाऊ हस्तरेखा जानते हैं
साथ ही थोड़ा अंक ज्योतिष
कुछ कुण्डली भी देख लेते हैं
रत्नों के बारे में कुछ का ज्ञान
हरेक को लहसुनिया
मूँगा या फिरोज़ा पहना देता है
न चाहते हुए भी
गाँव के लड़के को
तीन सौ रूपए
उधार देते हैं इलाहाबाद के लड़के
यह सोचकर कि
कभी उन्हें भी ज़रूरत पड़ेगी
जो कि पड़ती ही रहती है
जब-तब
देर रात तक पढ़ते हैं इलाहाबाद के लड़के
और जब देर से सोकर उठते हैं
तो पाते हैं कि उनकी
इस्तरी की हुई कमीज़ तो
उनका रूम पार्टनर पहन ले गया
रूम पार्टनर को जमकर गरियाते हैं
इलाहाबाद के लड़के...
शाम ढलते ही कमरे, क्वार्टर या डेरे से
निकल आते हैं
इलाहाबाद के लड़के
और जल्द ही लौट आते हैं
दो अंडे, बड़ी वाली ब्रेड
और हरी मिर्च लेकर
इलाहाबाद के लगभग हर लड़के के साथ कमरे पर बड़ा भाई होता है
बड़़े भाइयों के साथ छोटा होता है
सगा नहीं तो चचेरा या ममेरा
कुछ नहीं तो बगल के गाँव का
रिश्ते का भाई ही सही
इलाहाबाद के लड़के
खाना बनाने और खाने तक
श्रम के बंटवारे के मार्क्सवादी
सिद्धांत को मानते हैं
जो छीलता- काटता है
वह पकाता नहीं
जो भूनता- छौंकता है
वह परोसता नहीं
खा- पी कर सामंतवादी हो जाते हैं
इलाहाबाद के लड़के....
सबसे बड़े खाना खाकर
या तो लेटते हैं
या फिर
बगल के कमरे में चले जाते हैं
या फिर पान खाने
और छोटे लड़के
जूठे बर्तनों के बीच
खुद को घिरा पाते हैं
छोटे लड़के
योजना आयोग, वित्त आयोग
लोक सेवा आयोग से लेकर
परमाणु ऊर्जा आयोग के
एक- एक सदस्य तक का नाम जानते हैं
लेकिन मकान मालिक की
भांजी का नाम नहीं जान पाते
पूरी गर्मियों भर
गरमी की छुट्टियों के बाद
वापस लौट जाती हैं
इलाहाबाद की सब
प्रवासी अनामिका चिडि़याएँ
बड़े लड़के
मार्क्स और कृष्णमूर्ति को
एक साथ पढ़ते हैं
अरविन्द को पढ़ते- पढ़ते
डेढ़ साल की नन्हीं बिटिया याद आ जाती है
फिर बिटिया की माँं
जींस वाली लड़कियों से कतराते हैं
इलाहाबाद के लड़के.....
क्योंकि उनमें से ज़्यादातर
अंग्रेज़ी में बतियाती हैं
दुनिया की सबसे ऊँची इमारत का नाम
जानते हैं इलाहाबाद के लड़के...
लेकिन यह नहीं जान पाते
कि तीन महीने पहले जो
सीढि़यों पर फिसलकर गिरी
तो अभी तक
बिस्तर पर ही है माँ
यह भी नहीं जान पाते
इलाहाबाद के लड़के....
कि एक और लड़का
देखकर नकार आया है
उनकी छुटकी को
घर वालों की उम्मीदों की तरह
बढती जाती है
इलाहाबाद के लड़कों की उम्र
सपनों की ऊँचाई से गिरकर
चोट खा बैठते है
इलाहाबाद के लड़के
सफलता कोचिंग में डेढ़ साल पढ़ाकर
एल एल बी में एडमिशन ले लेते हैं
इलाहाबाद के लड़के...
गाँव लौटकर
विधायक जी के प्रतिनिधि
कुशवाहा जी के साथ घूमते हैं
एक साल तक
कभी सरपंच के चुनाव की तैयारी करते हैं
कभी ग्रामीण बैंक से क़र्ज़ लेते हैं
मिर्जापुर या सतना में
अंगूर की खेती के लिए
पहले बहन
फिर भतीजी की
शादियाँ निपटाकर
बेटी के लिए
लड़का खोजने निकलते हैं
इलाहाबाद के लड़के.....
लड़ते ही रह जाते हैं
उम्र भर
लड़के ही रह जाते हैं
इलाहाबाद के लड़के..
.....................................